नाबार्ड और बजाज फाउण्डेशन के सहयोग से सीकर के किसान भी अब बनेंगे उद्यमी
जिला कलेक्टर ने पिपराली में नवजागृृति कृषक उत्पादक संगठन (त्रिवेणी कच्ची घाणी) का किया उद्घाटन
सीकर 20 नवम्बर। जिला कलेक्टर यज्ञ मितर्् सिंहदेव ने पिपराली में नाबार्ड और बजाज फाउण्डेशन के सहयोग से बनाये गये नवजागृृति कृषक उत्पादक संगठन (तिर््वेणी कच्ची घाणी) का फीता काटकर उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि नाबार्ड एवं बजाज फाउण्डेशन के सहयोग से सीकर में पहला कृषि उत्पादक संगठन स्थापित किया जायेगा। उन्होंने ग्रामीणों से कहा कि संगठन में ही शक्ति है, इस सिद्धांत को अपनाते हुए किसान इस संगठन को आगे बढ़ायें और अपनी आय में वृद्धि करें। उन्होंने विश्वास जताया कि यह संगठन जिले में एक रोल मॉडल के रूप में काम करेगा तथा जिले के अन्य किसानों को कृषक उत्पादक संगठन के माध्यम से अपनी आय की वृद्धि करने करने के लिए प्रेरित करेगा। उन्होंने बताया कि राजस्थान में गंगानगर झींगा उत्पादन में प्रथम जिला है जो उत्पादन की किस्म का किसान को अधिकतम कीमत देती है। उन्होंने कहा कि ऎसे उत्पादक संगठन का जिला प्रशासन द्वारा भी पूरा सहयोग मिलेगा तथा आपसी सहयोग से लोग अपने आप जुडेंगे। उन्होंने कहा कि गुजरात में दुग्ध उत्पादन का व्यवसाय छोटे रूप में स्थापित हुआ था जो आज भारत में सार्वधिक दुग्ध उत्पादक करने वाला राज्य है।
जमनालाल कनीराम बजाज ट्रस्ट के अध्यक्ष हरि भाई मोरी ने बताया कि कृषक अपनी उपज कहां पर बैचान करें इसकी जानकारी किसान को होनी चाहिए। गुजरात में हर जिले में प्रतिदिन 10 हजार किसानों का पंजीकृत करने का लक्ष्य है।
इस अवसर पर नाबार्ड सीकर के जिला विकास प्रबंधक एम.एल मीना ने बताया कि उत्पादक संगठन (पीओ) किसानों, दुग्ध उत्पादकों, मछुआरों, बुनकरों, ग्रामीण कारीगरों, शिल्पकारों आदि प्राथमिक उत्पादकों द्वारा गठिन विधिक निकाए है। किसान संगठनों द्वारा गठित उत्पादक संगठन को कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओं) कहते हैं।
उत्पादक संगठन (पीओ) की मूलभूत वि6ोषताएं ः इसे कृषीतर गतिविधियों के लिए उत्पादकों के समूह द्वारा गठित किया जाता है, यह पंजीकृत और विधिक निकाए है, संगठन में उत्पादक शेयर धारक होते है। यह प्राथमिक उपजों, उत्पादों से संबंधित व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करता है, यह उत्पादक सदस्यों के लाभ के लिए कार्य करता है, अधिशेष के बचे हुए हिस्से को इसकी स्वामित्व वाली निधियों में व्यवसाय के विस्तार के प्रयोजन से जोड़ा जाता है। उत्पादक संगठन का स्वामित्व उसके सदस्यों में निहित होता है।
यह उत्पादाकों का उत्पादकों द्वारा और उत्पादकों के लिए संगठन है।
उत्पादक संगठन के गठन की आवश्यकता ः भू-जोतों का लगातार छोटा होना, खेती की बढ़ती लागत, सुनिश्चित बाजार, आधुनिक प्रौद्योगिकी और गुणवत्तापूर्ण निविष्टियों के अभाव के कारण छोटे सीमांत भू-जोत धारक अपनी उपज की यथेष्ट कीमत प्राप्त नहीं कर पाते और उत्पादकता भी इष्टतम स्तर पर नहीं पहुंच पाती। यह देखा गया है कि कृषि उपज को एक साथ मिलाना किसानों की आय में वृद्धि के प्रभावी उपायों में से एक है क्योंकि इसमें गुणवत्तापूर्ण निविष्टियों, सक्षम प्रौद्योगिकी,ऋण और बाजार तक पहुंच में सुधार होता है और साथ ही किसानों की मोलभाव की ताकत बढ़ती है इसके अलावा किसान मात्र में वृद्धि के कारण मूल श्रृंखला में सीधे भाग ले सकते है। कृषक उत्पादक संगठनों के रूप में संगठित होने से किसानों को होने वाले प्रमुख लाभ इस प्रकार है।
अपेक्षाकृत बड़े पैमाने पर परिचालन ः उत्पादक संगठन छोटे स्तर के उत्पादकों, किसानों के व्यावसायिक गतिविधियों को परस्पर जोडते है जिससे समग्र रूप में परिचालन का पैमाना बढ़ जाता है और बडे पैमाने पर की जाने वाली आर्थिक गतिविधियों का लाभ निविष्टियों और व्यवसायगत लेन-देनों की लागत में कमी के रूप में मिलता है। समेकन की कारण उत्पादक संगठन मात्र और गुणवत्ता दोनों दृष्टियों से कृषि उपज की आपूर्ति में निरंतरता बनाए रखने में सक्षम होते हैं।
बाजार तक बेहतर पहुंच ः कृषि उपज के समेकन के कारण छोटे पैमाने पर खेती करने वाले उत्पादक खरीददारों को जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त पैमाने पर काम कर सकते है। इसके अलावा, बड़ी मात्र में उपज के प्रसंस्करण से उत्पादक संगठन बाद में उच्चतर मूल्य के बाजारों तक पहुचं बना पाते है और अपनी उपज की बेहतर कीमत प्राप्त कर सकते है।
मोलभाव करने की शक्ति में वृद्धि ः सामूहिक रूप से काम करने से विषे6ा रूप से छोटे, सीमांत उत्पादकों की मोलभाव करने की शक्ति कई तरह से बढ जाती है । अपने उत्पादों के समेकन और उनकी गुणवत्ता में सुधार लाकर पूरे मौसम के दौरान अलग-अलग सदस्यों के बीच उत्पादन का बंटवारा कर उत्पादक खरीददारों की निश्चित मांग को पूरा कर सकते है और इसलिए बेहतर कीमत के लिए मोलभाव कर सकते है। बड़े पैमाने पर की जाने वाली आर्थिक गतिविधियों के कारण उत्पादक संगठन प्रसंस्करण, भंडारण, परिवहन सुविधाओं में अपेक्षाकृत अधिक असानी से निवेश कर सकते है जिससे सदस्यों को यह चुनने का सामथ्र्य मिलता है कि वे कब और कहां अपनी उपज बेंचे।
सेवाओं तक बेहतर पहुंच ः किसी एकल उत्पादक को कोई सेवा प्रदान करने कि अपेक्षा समूहों को सेवा प्रदान करने में लेन देन की लागत कम आती है और बडे पैमाने पर की जाने वाली आर्थिक गतिविधि के कारण किफायत होती है। इससे विभिन्न व्यवसायों और सेवा प्रदाताओं के लिए छोटे स्तर के उत्पादकों के साथ काम करना भी अपेक्षाकृत सस्ता और आसन हो जाता है। दूसरे, उत्पादकों के संगठित और विधिक रूप से पंजीकृत समूह एकल उत्पदकों के अपेक्षा अधिक वि6वसनीय होते है और उनका प्रोफाईल उच्चतर होता है।
वि6ोषज्ञता ः उत्पादक संगठनों से किसान, छोटे और सीमांत उत्पादक अपने संसाधनों को एकतिर््त कर सकते है और अलग-अलग विशिष्ट व्यवसायगत कामों में श्रम को विभाजित कर सकते है, इससे संगठन श्रम को अधिक दक्षतापूर्ण उपयोग करने, प्रमुख कार्यों में विशेषज्ञता विकसित करने और अन्य सामाजिक आर्थिक गतिविधियों के लिए अपने सदस्यों को समय बचाने में समर्थ होते है।
सहकार ः एक साथ मिलकर काम करने की प्रक्रिया से एकता मजबूत होती है, साझा सामाजिक पूंजी का निर्माण होता है और उत्पादकों किसानों में आत्मविश्वास विकसित होता है जिससे वे बाजार के उभरते जोखिमों और चुनौतियों का सामना करने और बाजार को प्रभावित करने वाली स्थानीय नीतियों और कार्य प्रद्धतियों को प्रभावित करने में समर्थ होते है।
एफपीओ को नाबार्ड की सहायता ः क्लासरूम प्रशिक्षण, एक्सपोजर दौरों, कृषि विश्वविद्यालयों के साथ गठबंधन, विशेषज्ञों की बैठकों और व्यवसाय को सुगम बनाने, आरंभिक सेवाओं के लिए कृषि व्यवसाय के उधभव के लिए काम करने वालों, व्यावसायिक एजेंसियों के साथ गठजोड़ के साथ कौशल विकास, व्यावसायिक आयोजना, प्रौद्योगीकीय प्रसार जैसे एफपीओं को सीधे लाभ पहुंचाने वाले प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए अनुदान सहायता दी जाती है।
कार्यक्रम में उपनिदेशक कृषि 6िावजी राम कटारिया, अग्रणी जिला प्रबंधक ताराचन्द परिहार, निदेशक मण्डल के सदस्य धोद सहित दांतारामगढ़ और लक्ष्मणगढ़ के किसान बडी संख्या में उपस्थित रहें।